जैन मर्यादित घृत (घी)
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भारत में पहली बार भारतीय कांकरेज गौ के दूध से एवं जैन धर्म की “शुचिता एवं अहिंसा” के दर्शन की कसौटी पर बनाया गया “जैन मर्यादित घृत”। शुचिता एवं परंपरा के अद्धभुत मेल से बना “जैन मर्यादित घृत” ना सिर्फ जैन दर्शन के अनुयायियों अपितु समस्त भारतीयों के स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम गौघृत है। जैन मर्यादित विधि ही वास्तव में विशुद्ध आयुर्वेदिक विधि है।
सूर्य की किरणों में विद्यमान् “क्रिया एवम प्रज्ञा ऊर्जा” को अपने विशालकाय सींगो से सबसे अधिक अवशोषित करने वाली, सुर्यकेतु नाड़ी को धारण करने वाली, प्राकृतिक वातावरण में चरने वाली, वात्सल्य और साहस की प्रतिमूर्ति, “काकंरेज़” गौ माँ के क्षीर दूध से बना।
मिट्टी की हंडिया में पका
1 लीटर ”जैन मर्यादित घृत” को बनाने के लिये 30 से 32 लीटर ताजे दूध को सिर्फ मिट्टी की हंडिया में गोबर के कंडो की सूक्ष्म आंच के हारे में लगभग 8-10 घंटे पकाया जाता है। धीमी गति से पकने के कारण दूध के सभी सूक्ष्म पोषक तत्व सुरक्षित रहते है।
फिर पके हुए दूध को जैन धर्मानुसार ”चांदी की ईंट” से दही जमाकर, सुर्योदय से पहले ”मर्यादित एवं छने जल” का प्रयोग करते हुए दही को पारंपरिक मथनी से दायें-बायें मथकर निकले शुद्ध मर्यादित मक्खन को ”48 मिनट” के अन्दर मिट्टी की हंडिया में तपाकर बनाया जाता है।
आयुर्वेद की दृष्टि में लाभ
1 समस्त पित्त दोषों को हरने वाला।
2 चांदी की ईंट से दही जमाने के कारण, पेट के सभी रोगो में अत्यंत लाभदायक।
3 जठराग्नि को प्रबल करने वाला। यही जठराग्नि भोजन को पचाकर उसमें उपलब्ध समस्त पोषक तत्वों को अवशोषित करने में सहायक होती है।
4 रस-रक्त-मांस-मेद-मज्जा और शुक्र (वीर्य) रुपी सप्त धातुवर्धक।
5 धारणा शक्ति, स्मरण शक्ति एवं ज्ञान शक्ति बढ़ाने वाला।
6 समस्त वात विकारो को हरने वाला।
7 बढ़ती आयु को स्थिर करने वाला ।
8 एसीडिटी, हाइपरएसीडिटी को नष्ट करने वाला।
9 नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला।
10 त्वचा में कांति और स्निग्धता लाने वाला।
11 यौवन को बढ़ाने वाला